Dhanvantari Chalisa

।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।
ॐ गं गणपतये नमो नमः ।
पढके मंत्र सबकी दुर्मति मारि ।।१।।

रिद्धि सिद्धि सहित गणेशजी विराजे ।
आदिदेव बुद्धिदाता सबके दुःख बुझावे ।।२।।

श्वेतांबरधरा निर्मल तुहि बुद्धि बल राशि ।
सकल ज्ञान धारी अमर अविनाशी ।।३।।

करत हंस सवारि जय सरस्वती माता ।
पूरा ब्रम्हान्ड तेरे हि अन्दर विख्याता ।।४।।

मै मूढ अतिदीन मलीन दुखारी ।
स्वामी तुहि गुरु होके करे सुखारी ।।५।।

सद्गुरु बनके सुन्दर ज्ञान भरीजे ।
देके हाथ मोहक ऐसा जीवन करीजे ।।६।।

नमन ऐसे करुनि श्री कुलदेव-श्री कुलदेव स्वामिनी सी ।
पंचायतन अधिष्ठाता तया सर्व देवासी ।।७।।

वंदन करोनि कामधेनु अशा कृपालू मातेसी ।
धारण करते उदरात तेतीस कोटी देवासी ।।८।।

नमन माझे भिषक् राज धन्वंतरी प्रती ।
देउनी आरोग्य बलवान बनविती ।।९।।

अमृत प्राप्तीस देवासुर भिषण कलहती ।
सहायता घेउनी क्षीरसिन्धु मथीती ।।१०।।

मेरूची अरनी वासुकी साथीने मथिली ।
चौदह रत्ने मौल्यवान तयातुनी झळकली ।।११।।

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातक सुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः।
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवाङ्गनाः ।।१२।।

अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शङ्खोमृतं चाम्बुधेः।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मङ्गलम् ।।१३।।

ऐसे धन्वंतरी प्रगट हुए लेके अमृत घट ।
खात्मा करके रोगों का करेंगे सुख की लूट ।।१४।।

तुम्हारी महिमा बुद्घि बड़ाई ।
शेष सहस्त्रमुख सके न गाई ।।१५।।

जो तुम्हारे नित पांव पलोटत ।
आठो सिद्धी ताके चरणा में लोटत ।।१६।।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी ।
जो तुम पे जावे बलीहारी ।।१७।।

जय जय जय धन्वंतरी भिषक् राज ।
दुःखहारक सुखदायक तुहि वैद्यराज ।।१८।।

जय जय जय विष्णु अवतारी पालनकारी ।
औषधीदाता वीर्यवान मनःसंताप हारी ।।१९।।

जय जय जय प्रभु तु ज्योति स्वरूपा ।
निर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ।।२०।।

जय जय जय चतुर्भुजा कुलोद्धारी ।
रोग नाशी पावनकारी अमृत वन धारी ।।२१।।

जय जय जय विषनाशी शंखचक्र गदा धारी ।
संकटमोची दानशुर ते बलकारी ।।२२।।

शिरोधारी धन्वंतरी नेत्रे सुनेत्री ।
कर्णो सुदर्शन धारी जिव्हा ज्ञानदायी ।।२३।।

नासिका रत्नधारी मन्या बलशाली ।
स्कन्धौ स्कन्द पिता वक्ष धारि सुवक्षा ।।२४।।

उदरम् पाली विघ्नहारी गुह्येंद्रियौ सुशाली ।
जंघे जंघनायक पादौ पाली विश्वधारी ।।२५।।

सदा सर्व देहि रक्षिती सौभाग्यकारी ।
न्तरबहि अहोरात्री पाली दारिद्रय हारी ।।२६।।

लखी रक्षा कवच ऐसी महिमा भारी ।
धन्वंतरी माई सर्व जगत की हितकारी ।।२७।।

नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्त जनो के संकट तारे ।।२८।।

कायिक मानसिक पीढा है सबसे भारी ।
नाश करने दवा सुझावे जय दुःखहारी ।।२९।।

धन्वंतरी का नाम लेत जो कोई ।
ता सम धन्य और नही कोई ।।३०।।

जो तुम्हारे चरणा चित लावे ।
ताकि मुक्ति अवसी हो जावे ।।३१।।

अब प्रभु दया दीन पर कीजे ।
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजे ।।३२।।

स्नानोत्तर नाम लेत जो कोई ।
ता सम पुण्य और नही कोई ।।३३।।

नमो माई धन्वंतरी, करे नाडी परीक्षा ।
नाश करे गर को ऐसे देवे सुरक्षा ।।३४।।

आशीर्वाद तुम्हारा बहुत ही हितकारी ।
चौसठ जोगन रहे आज्ञाकारी ।।३५।।

निशिदिन ध्यान धरे जो कोई ।
ता सम भक्त और नही कोई ।।३६।।

चारिक वेद प्रभु के साखी ।
तुम भक्तन की लज्जा राखी ।।३७।।

धन्वंतरी देव अंश इस सृष्टि का ।
सुखी करे भाव उसी दृष्टी का ।।३८।।

तीन लोक तुम्हारे चरणो मे होवे ।
सारे विश्व सुख ही सुख देवे ।।३९।।

पढके धन्वंतरी चालीसा वर देहि महान ।
खुश करे भक्त को बनादे भाग्यवान ।।४०।।

।। श्री धन्वंतरी अर्पनमस्तु ।।॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||

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