हवन हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य शांति, समृद्धि और शुभता की प्राप्ति करना है। यह एक पवित्र विधि है जिसमें अग्नि में हवन सामग्री (समिधा) अर्पित की जाती है और साथ ही मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। घर में हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है, नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
इस गाइड में हम आपको घर में हवन करने के मंत्र एवं संपूर्ण विधि की जानकारी देंगे। आप जानेंगे कि हवन के लिए किन-किन सामग्रियों की आवश्यकता होती है, हवन की सही विधि क्या है, और किन मंत्रों का जाप करना चाहिए। इस विधि का सही ढंग से पालन करने पर आपके घर में शांति, समृद्धि और सुख-समृद्धि का वास होगा।
घर में हवन करने के मंत्र एवं संपूर्ण विधि
।। हवन विधि ।।
।। आचमन ।।
निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीन बार आचमन करें।
‘ॐ केशवाय नमः,
ॐ नारायणाय नमः,
ॐ माधवाय नमः (यह मंत्र बोलते हुए हाथ धो लें)
ॐ हृषीकेशाय नमः।
।। स्वयं तिलक करें।।
ॐ चंदनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पापनानम।
आपदां हरते नित्यं लक्ष्मीः तिष्ठति सर्वदा ।।
।। रक्षासूत्रबंधन ।।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबंध्रामि रक्षे मा चल मा चल।।
(शूलेन पाहि नो देवि या मृत्युंजय मंत्र पढ़कर भी बांध सकते है)
।। दीप पूजन ।।
दीपक प्रज्ज्वलित कर अक्षत आदि से दिप का पूजन करें।
दीपो ज्योतिः परं ब्रम्ह दीपो ज्योतिः जनार्दनः।
दीपो हरतु में पापं दीपज्योतिः नमोऽस्तु ते ।।
भो दीपा देविरूपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत।
यावतकर्मसमाप्तिस्यात् तावत त्वं सुस्थिरो भवः ।।
प्रथम गौरीगणेश, शिव, गुरु, पृथ्वी, कलश व अनुष्ठान के देवता आदि का यथा उपचार पूजन करने के पश्चात पीले चावल या पीली सरसों आसपास छिड़क कर दिकबन्धन करें।
।। दिकबन्धनः ।।
ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः, आग्नेयां गरुड़ध्वजः।
दक्षिणे पद्मनाभस्तु, नैऋत्यां मधुसूदनः ।।
पश्चिमे चैव गोविन्दो, वायव्यां तु जनार्दनः।
उत्तरे श्री पति रक्षेत्, देशान्यां हि महेश्वरः ।।
अनुक्तमपि यत् स्थानं रक्षतु ।
अनुक्तमपि यत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् ।।
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः।
ये भूताः विघ्कर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञाया।।
अपक्रमन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशं।
सर्वेषां विरोधने यज्ञकर्म समारभे ।।
।। अग्निस्थापनमः ।।
त्वं मुखं सर्वदेवां सप्तार्चिरभिद्यते।
आगच्छ भगवन्नग्ने यज्ञेस्मिन्सन्निद्यो भवः।
अग्निं आवाहयामि। स्थापयामि।
इहागच्छ।
इहतिष्ठ।।
अग्नि का पंचोपचार पूजन इस ही मंत्र से करें।:-
ॐ पावकाग्नये नमः ।।
हाथ को जोड़ कर अग्नि से प्रार्थना करें।:-
ॐ अग्ने चण्डिल्यगोत्रमेषध्वज !
प्राङ् मुख मम सम्मुखो भव ।।
पलाश की तीन समिधाओं को घी में भिगोकर खड़े होकर निम्न मंत्र से अग्नि में छोड़े।
ॐ समिधोभ्यादाय नमः ।।
।। अग्नि संस्कार ।।
अग्नि संस्कार हेतु घृत आहुति दें
ॐ अस्याग्ने गर्भधान संस्कारं करोमि स्वाहा।।
ॐ अग्नेः पुंसवनः संस्कारं करोमि स्वाहा।।
ॐ अग्नेः सीमन्तोन्नयन संस्कारं करोमि स्वाहा।।
अग्नि में घी से आहुति दें:-
ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम
ॐ इन्द्राय स्वाहा इदमिन्द्राय न मम
ॐ अग्नये स्वाहा, इदमग्नये न मम।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम
ॐ अग्निसोमाभ्यां स्वाहा, इदं अग्निसोमाभ्यां, इदं न मम।
ॐ अग्नये स्विष्ट कृते स्वाहा, इदं अग्नयेस्विष्टकृते, इदं न मम।
ॐ भूः स्वाहा, इदमग्नये न मम।
ॐ भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम।
ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम, ।
निम्न मंत्र से तीन बार आहुति करें।
ॐ वैश्वानर जातवेद इहावह लोहिताक्ष सर्व कार्याणि साधय स्वाहा।।
१,५या१० आहुति गणपति व माँ गौरी (दुर्गा) के करें।
ॐ गणानान्त्वा गणपत • हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति • हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति • हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् स्वाहा, इदं गणपतये न मम।
ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां कांपील-वासिनी स्वाहा।।
ॐ अम्बे स्वाहा।
ॐ अम्बिके।
ॐ अम्बालिके स्वााहा।
अब अनुष्ठान से संबंधित सभी आहुतियां करें।।
।। स्विष्टकृत होम ।।
हवन करते समय जो भी भूल हो गयी हो, उसके प्रायश्चित के रूप में गुड़ व घृत की आहुति दें।
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम ।
।। पूर्णाहुति संकल्पमः ।।
हाथ में जल अक्षत लेकर प्रार्थना करे।
फिर अक्षत व जल को धरती पर छोड़ दें।
मन्त्र में रिक्त स्थान पर देवता या अनुष्ठान का नाम लें।
अद्य पुण्य तिथौ ……. अनुष्ठानहवनकर्मणः सांगतासिद्धयथम् मृडनामाग्नौ पूर्णाहुतिं होष्ये ।।
विनियोग
ॐ मूर्द्धानमिति मंत्रस्य भारद्वाज ऋषि वैश्वानरोदेवता त्रिष्टुपछन्दः पूर्णाहुति होमे विनियोगः।
पूर्णाहुति के लिए एक पान के पत्ते में एक जायफल, पूजासुपारी, गुड़, एक रुपया, सूखे नारियल पर घी लगा कर और हवन सामग्री रख कर निम्न मंत्रों से आहुति करें।
ॐ ………………।।
ॐ समुद्रादूर्मिमधुमाँधुमाउदारदुपा र्ट शुनासममृतत्वमानट्।
घृतस्य नाम गुह्यं यदस्ति जिह्वादेवाना ममृतस्य नाभिः ।।
व्यन्नाम प्रब्रवामा घृस्यास्मिन यज्ञे धारयामानमोभिः।
उपब्रह्मा श्रृणवच्छस्यामानं चतुः श्रृंगोवमीगौर एतत् ।।
एता अर्षन्ति हृङ्ख्यात् समुद्रच्छत वज्रा रिपुणानावचक्षे।
घृतस्य धाराअभिचाकशीमि हिरण्ययो वेतसोमध्य आसाम् ।।
ॐ त्चित्ति जहोमि मनसा घतेन यथा देता दहागमन्तीति ।
होत्रा ऋता वृधः।
पत्ये विश्वस्य भूमनो जुहोमि।
विश्कर्मणे विश्वाहा दाभ्य • हविः ।।
ॐ पूर्णादर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत।
वस्त्रैव विक्रीणावहा।
इषमूर्ज – शतक्रतो।
पुनस्त्वादित्याः रुद्राः वसवः समिन्धताम् पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथयज्ञैः।
सन्तु यजमानस्य कामाः सर्व वै पूर्ण र्ट् स्वाहा।।
घृतेन त्वं तन्वं वर्ध्ययस्व सत्याः आहुति के बाद पान हटा लें और आहुति के नारियल को यत्न करके हवन कुंड में सीधा करते हुए आधा दबा दें।
जिसमे बूंच वाला हिस्सा ऊपर की ओर रहे।
आगे दुये हुए मन्त्र से हवन में बची हुई आहुति के घृत की धार नारियल के ऊपर छोड़ते जाएं ॐ सप्तते अग्नेसमिधः सप्तजिह्वाः सप्तऋष्यः सप्तधामप्प्रियाणि सप्तहोताः सप्तधत्वा यजन्ति सप्तयोनीरापृणस्व घृतेन स्वाहा।।
शुक्रज्योतिश्च चित्रज्योतिश्च सत्यज्योतिश्च ज्योतिमाँश्च ।
शुक्रश्च ऋतपाश्चात्य -हाः।।
वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्त्रधारम।
देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः, स्वाहा।।
इसके बाद अनुष्ठान के देवता की आरती आदि करें।
भस्मधारण
यज्ञकुंड से स्तुवा (जिससे घी की आहुति दी जा रही थी) में भस्म लेकर तिलक करें।
।। प्रदिक्षणा ।।
हवनकुंड की ३ परिक्रमा करें।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्चन्तु प्रदक्षिणः पदे पदे।
।। क्षमा प्रार्थना ।।
ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर/परमेश्वरी।
ॐ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर/सुरेश्वरी
यत्पूजितं माया देवं/देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ।।
।। विसर्जन ।।
थोड़े-से अक्षत लेकर देव स्थापन और हवन कुंडमें निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए चढायें।
देवता के लिए:- ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर। यत्र ब्रम्हादयो देवाः तत्र गच्छ हुताशन ।।
देवी के लिए:-
गच्छ देवी महामाया कल्याणं कुरु सर्वदा।
यथा शक्ति कृता पूजा भक्त्या कमललोचले ।।
गच्छन्तु देवताः सर्वे दत्वा मे वरमीप्सितम।
त्वम गच्छ परमेशानि सुख सर्वत्र गनैः सह।।