Shiv Raksha Stotra in Hindi

शिव रक्षा कवच स्तोत्र भगवान् शिव के शक्तिशाली स्तोत्रों में से एक है। आज के इस पोस्ट में हम शिव रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित जानने वाले हैं।

शिव रक्षा कवच स्तोत्र व्यक्ति को समस्त सांसारिक भय और कष्टों से रक्षा कर परम कल्याण प्रदान करने वाला स्तोत्र है। जिसकी रचना महान् योगी, ज्ञानी और भगवान् ब्रह्मा के अवतार ऋषि यागवल्क्य ने की थी।

ऐसी उल्लेख मिलता है कि भगवान् नारायण ने स्वयं ऋषि यागवल्क्य के स्वप्न में आकर उन्हें शिव रक्षा स्तोत्र को बताया था।

शिव रक्षा कवच स्तोत्र पाठ संस्कृत में

भगवान् शिव नित्य और अजन्मा हैं। इनका आदि और अंत नहीं होने के कारन ये अनादि और अनंत भी हैं। शास्त्रों में भगवान् शिव के बारे में कहा गया है “यस्मात परं नापरमस्ति किञ्चित” अर्थात जो इस ब्रह्माण्ड के सर्वोपरि परात्पर तत्व हैं, जिनके परे और कुछ भी नहीं है वो भगवान् शिव हैं।

अगर आप किसी भी प्रकार के कष्ट, दुःख, रोग या भय से पीड़ित हैं तो पूर्ण आस्था के साथ नित्य शिव रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित पाठ जरूर करें।

।। शिव रक्षा कवच स्तोत्र विनियोग ।।

विनियोग: – ऊँ अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि:,
श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोग:

। ऊँ शिव रक्षा स्तोत्र ।

चरितम् देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।

अपारम् परमोदारम् चतुर्वर्गस्य साधनम् ।1।

गौरी विनायाकोपेतम् पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।

शिवम् ध्यात्वा दशभुजम् शिवरक्षां पठेन्नरः।2।

गंगाधरः शिरः पातु भालमर्धेन्दु शेखरः।

नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषणः ।3।

घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पतिः ।

जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शितिकन्धरः ।4।

श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।

भुजौ भूभार संहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ।5।

हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।

नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ।6।

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागत वत्सलः।

उरु महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ।7।

जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।

चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ।8।

एताम् शिवबलोपेताम् रक्षां यः सुकृती पठेत्।

स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्।9।

गृहभूत पिशाचाश्चाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।

दूराद् आशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्।10।

अभयम् कर नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।

भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ।11।

इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽदिशत् ।

प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत् ।12।

।इति श्री शिवरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम।

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